मेरी शिक्षा शब्दार्थ :
बेखौफ | निडर |
अक्षरारम्भ | लिखने की शुरुआत |
सबक | सीख, पाठ |
बिसमिल्लाह | शुभारंभ |
दरख्त | पेड़ |
सुपुर्द | सौंपना, जिम्मेदारी में देना |
मेरी शिक्षा पाठ का सारांश
प्रस्तुत पाठ डॉ० राजेन्द्र प्रसाद जी की ‘आत्मकथा’ से लिया गया है। इन्हें पाँचवें या छठे वर्ष में मौलवी द्वारा फारसी पढ़वाना शुरू किया था। इनके दो और चचेरे भाई थे। इनमें यमुना प्रसाद लीडर थे, जो तमाम खेलों और शैतानी में आगे थे। इनके चचा बलदेव प्रसाद बहुत मजाकिया थे। वे घुड़सवारी, बन्दूक व गुलेल चलाना अपने पिता जी की तरह ही जानते थे। मौलवी साहब विचित्र आदमी थे। वे बलदेव चाचा द्वारा अपना मजाक उड़वाते रहते थे। अपने दावे के अनुसार उन्हें शतरंज खेलना आता था, परन्तु खेल में वे जीतते कभी नहीं थे। उन्हें गुलेल चलाना भी आता था, परन्तु जब एक बन्दर मारने के लिए उन्होंने गुलेल चलाई; तब अपने हाथ पर ही चोट मार ली। एक दिन शाम को वे टहल रहे थे कि एक साँड़ आ गया। बलदेव चचा के इशारे पर मौलवी साहब बेखौफ आगे बढ़े कि साँड़ ने उन्हें पटक दिया। पेड़ पर गिद्ध मारने को मौलवी साहब ने बन्दूक का घोड़ा दबा दिया। गिद्ध के बजाय वे स्वयं ही गिर पड़े।
इस प्रकार के मजाकिया माहौल में फारसी की पढ़ाई चली। इन मौलवी साहब के जाने पर दूसरे गम्भीर मौलवी साहब आए। वे हफ्ते में साढ़े पाँच दिन फारसी पढ़ाते थे। वे एक कोठरी में रहते थे। सवेरे आकर पहला पाठ दोहराकर तब दूसरा पाठ पढ़ाते। सूरज निकलने पर नाश्ते के लिए आधे घंटे की छुट्टी मिलती। दोपहर में नहाने व खाने के लिए डेढ़ घंटे की छुट्टी मिलती और तख्तपोश पर सोना पड़ता था। मौलवी साहब चारपाई पर सोते थे। दोपहर बाद सबक याद कर सुनाने पर ही खेलने की छुट्टी मिलती।
संध्या को जल्दी नींद आती। जमनाभाई जल्दी छुट्टी का उपाय करते। वे रेत की पोटली दीये में छिपाकर रख देते। तेल जल्दी सूखने पर दीया बुझ जाता। मौलवी साहब मजबूर होकर किताब बन्द करने का हुक्म देते। .
इस प्रकार, फारसी का ज्ञान पाकर, फिर अंग्रेजी पढ़ने के लिए घर छोड़कर छपरा जाना पड़ा। घर छोड़ने से मौलवी साहब और अन्य को बहुत दुख हुआ।
मेरी शिक्षा अभ्यास प्रश्न
1. बोध प्रश्न – उत्तर लिखिए
(क) बालक राजेंद्र प्रसाद का अक्षरारंभ किसने कराया था?
उत्तर: बालक राजेंद्र प्रसाद का अक्षरारंभ मौलवी साहब ने बिस्मिल्लाह के साथ कराया था।
(ख) उनके साथ कौन-कौन पढ़ता था ?
उत्तर: उनके साथ कुटुम्ब के ही दो चचेरे भाई पढ़ते थे।
(ग) पहले मौलवी साहब व दूसरे मौलवी साहब में क्या अन्तर था ?
उत्तर: पहले मौलवी साहब कुछ न जानते हुए भी सब कुछ जानने व करने दावा करते थे; जबकि दूसरे मौलवी साहब गम्भीर थे और अच्छा पढ़ाते थे। वे सही अर्थ में शिक्षक थे।
(घ) देर तक न पढ़ना पड़े, इसके लिए जमनाभाई क्या चाल चलते थे ?
उत्तर: देर तक न पढ़ना पड़े, इसके लिए जमनाभाई दीये में रेत की पोटली डालकर तेल समाप्त कर देते थे। मजबूर होकर मौलवी साहब किताब बन्द करने का हुक्म देते थे।
2. सोच-विचार: बताइए –
दूसरे वाले मौलवी साहब के बारे में ऐसा क्यों कहा गया कि “वे बहुत गंभीर थे और अच्छा पढ़ाते भी थे।”
उत्तर: दूसरे वाले मौलवी साहब फिजूल की बाते नहीं करते थे । उनका ध्यान केवल पढ़ाई पर ही रहता था । इसलिए वे अच्छा पढ़ाते थे ।”
6. भाषा के रंग-
(क) नीचे लिखे शब्दों को सही क्रम में लिखकर वाक्य बनाइए –
- कोठरी / करते / रहा / में / वे / एक / थे
- समय / भी / था / खेलने / – / के लिए / कूदने / दिया / जाता
- आधा / प्रायः / मिलती / छुट्टी / घंटे / की / थी
- चारपाई / साहब / सोते / पर / मौलवी / थे
उत्तर:
- वे एक कोठरी में रहा करते थे ।
- खेलने-कूदने के लिए भी समय दिया जाता था ।
- प्रायः आधा घंटे की छुट्टी मिलती थी ।
- मौलवी साहब चारपाई पर सोते थे ।
(ख) छोटे – बड़े, इधर-उधर : यहाँ विलोम अर्थ देने वाले शब्दों की जोड़ी बनी है । इस प्रकार के शब्दों के जोड़े पुस्तक से ढूँढकर लिखिए।
उत्तर: खेलने-कूदने और खेल-कूद ।
(ग) धीरे-धीरे, तरह-तरह : यहाँ एक ही शब्द की आवृत्ति दो बार हुई है , इस प्रकार के पाँच शब्दों के जोड़े पुस्तक से ढूँढकर लिखिए ।
उत्तर: कर-कर , छल-छल, कंकड़-कंकड़ , युग-युग, पिघल-पिघल ।
(घ) ‘बेख़ौफ़’ शब्द में ‘बे’ उर्दू का उपसर्ग जुड़ा है | यह उपसर्ग शब्द में जुड़कर उसका अर्थ उलटा कर देता है । खौफ का अर्थ होता है -भय , परन्तु बेख़ौफ़ का अर्थ निर्भय हो जाता है । इसी प्रकार इन शब्दों के अर्थ लिखिए –
बेदाग , बेकसूर , बेघर , बेवजह , बेहिसाब , बेमिसाल ।
उत्तर:
बेदाग = दाग विहीन
बेकसूर = निर्दोष
बेघर = जिसके कोई घर न हो
बेवजह = जिसकी कोई वजह न हो
बेहिसाब = जिसका कोई हिसाब न हो
बेमिसाल = जिसकी कोई मिसाल न हो
4. तुम्हारी कलम से –
(क) आपका अक्षरारंभ किस उम्र में और कैसे हुआ ?
उत्तर: विद्यार्थी स्वयं अपना अनुभव लिखें ।
(ख) आप अपने स्कूल में कौन-कौन से विषय पढ़ते व सीखते हैं ?
उत्तर: आप स्कूल में जो भी विषय पढ़ते हैं उनके बारे में लिखें ।
(ग) आपको कौन-सा विषय सबसे अच्छा लगता है और क्यों ?
उत्तर: आपको जो भी विषय सबसे अच्छा लगता है उसके बारे में विद्यार्थी स्वयं लिखें ।
5. अब करने की बारी –
(क) डॉ राजेन्द्र प्रसाद स्वतन्त्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री थे । उनकी आत्मकथा पढ़िए ।
उत्तर: छात्र पुस्तकालय से पुस्तक लेकर राजेंद्र प्रसाद जी की आत्मा के बारे में जरूर पढ़ें ।
(ख) “सपने वो नहीं जो आप सोते वक्त देखते हैं । सपने वो होते हैं जो आपको सोने नहीं देते ।” यह प्रसिद्ध वाक्य भारत के एक पूर्व राष्ट्रपति का है । पता कीजिए वो कौन थे ?
उत्तर: यह कथन भारत के पूर्व राष्ट्रपति स्व० डॉ ए०पी०जे० अब्दुल कलाम जी का है ।
6. मेरे दो प्रश्न: पाठ के आधार पर दो सवाल बनाइए-
उत्तर:
- अंग्रेजी पढ़ने के लिए बालक राजेन्द्र प्रसाद को कहाँ जाना पड़ा ?
- बालक राजेन्द्र प्रसाद के चचेरे भाई का क्या नाम था ?
10. इस कहानी से –
(क) मैंने सीखा – सादा जीवन उच्च विचार जैसे व्यक्तित्व को हमें भी अपनाना चाहिए ।
(ख) मैं करूँगी/करूँगा – हमें भी डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद की तरह साहसी और दृढ़ प्रतिज्ञ बनूगी ।
यह भी जानिए जब कोई व्यक्ति अपने जीवन में घटने वाली घटनाओं एवं अनुभवों को स्वयं की ईमानदारी से लिखता है तो उसे आत्मकथा कहते हैं । आत्मकथा यानी अपने बारे में लिखी हुई कथा । क्या आपको भी अपने बचपन में घटी घटनाएं याद हैं ? तो आप भी शुरू कर सकते हैं अपनी आत्मकथा लिखना ! अपने बचपन की घटनाओं को याद कीजिए और लिखिए । |