विमल इन्दु की विशाल किरणें शब्दार्थ
अनादि | जिसका आरम्भ न हो |
अनन्त | जिसका अन्त न हो |
मनोरथ | इच्छा, मन की कामना |
दयानिधि | दया का सागर, ईश्वर |
चन्द्रिका | चाँदनी |
स्मित | मन्दहास, मुस्कान |
प्रसार | फैलाव |
निनाद | गुंजार |
तरंगमालाएँ | लहरों के समूह |
विमल इन्दु …………………………… दिखा रही हैं।।
संदर्भ– यह पद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘वाटिका’ के ‘विमल इन्दु की विशाल किरणें’ नामक पाठ से लिया गया है। इसके रचयिता ‘जयशंकर प्रसाद’ हैं।
प्रसंग– इस कविता में कवि ने ईश्वर की महिमा का वर्णन किया है।
भावार्थ- कवि प्रसाद जी ईश्वर की महिमा का बखान करते हुए कहते हैं कि स्वच्छ चन्द्रमा की उन्नत किरणें अर्थात् चाँदनी ईश्वर के प्रकाश को लक्षित कर रही है। ईश्वर की माया अनादि और अनन्त है। यह हमेशा रहनेवाली है और सारे संसार को ईश्वर का चमत्कार दिखा रही है।
प्रसार तेरी ..…………………………………….. गा रही हैं।।
भावार्थ– ईश्वर की दया का फैलाव (विस्तार) कितना अधिक है, यह अधिक फैले हुए समुद्र को देखने से पता लगता है। वास्तव में, भगवान दया के सिन्धु हैं। सागर की लहरों के गान में ईश्वर की प्रशंसा के राग गाया जाना उद्देश्य है।
तुम्हारा स्मित ………….……………………. जा रही हैं।।
भावार्थ– कवि कहता है कि जिसे ईश्वर का मन्दहास निहारना हो, वह चन्द्रमा की चाँदनी देखे। ईश्वर के हँसने की ध्वनि, नदियों की लगातार कल-कल करने की ध्वनियों में सुनाई पड़ रही हैं।
जो तेरी ……………………………….. दिला रही हैं।।
भावार्थ-हे, दया के समुद्र ईश्वर! जिस पर तेरी कृपा हो जाती है, उसकी सब इच्छाओं की पूर्ति हो जाती है। प्रकृति के भिन्न-भिन्न रूप चन्द्रमा, समुद्र की लहरों के समूह आदि सभी ईश्वर की महिमा उच्च स्वरों में वर्णित करके आशा का संचार कर रहे हैं।
अभ्यास प्रश्न:
1. बोध प्रश्न – उत्तर लिखिए
(क) ईश्वर की महिमा प्रकृति के किन-किन रूपों में दिखाई दे रही है? दिए गए उत्तरों को सही क्रम में लिखिए-
उत्तर:
ईश्वर का प्रकाश – विमल इन्दु की विशाल किरणों के रूप में
उसकी दया का प्रसार – सागर के रूप में
उसकी प्रशंसा के राग – सागर की लहरों के गान में
ईश्वर का मन्द हास – चाँदनी के रूप में
ईश्वर के हँसने की धुन – नदियों के निनाद में
प्रश्न २. परमात्मा को ‘दयानिधि’ क्यों कहा गया है?
उत्तर: परमात्मा संसार में सबसे अधिक दयावान हैं; इसी कारण उन्हें ‘दयानिधि’ कहा गया है।
(ग) तरंगमालाएं क्या कर रही हैं ?
उत्तर: तरंगमालाएं ईश्वर के प्रसंशा के गीत गा रही हैं ।
2. पंक्तियों का भाव स्पष्ट कीजिए –
तुम्हारे हँसने के धुन में नदियाँ
निनाद करती ही जा रही हैं ।
भावार्थ- ईश्वर के हँसने की ध्वनि,नदियों के लगातार कल-कल करने की ध्वनियों में सुनाई दे रही है ।
तेरी प्रसंशा का राग प्यारे
तरंगमालाएं गा रही हैं ।
भावार्थ- सागर की लहरें ईश्वर की प्रसंशा के गीत गा रही हैं ।
3. सोच विचार : बताइए –
(क) प्रकृति द्वारा निर्मित दस चीजों के नाम ।
उत्तर: जल, पेड़-पौधे, जीव-जंतु, पर्वत, वायुनदी, पहाड़,समुद्र, पक्षी, सूर्य |
(ख) मानव द्वारा निर्मित बीस चीजों के नाम ।
उत्तर – कुर्सी , मेज , कार , बस , रेलगाड़ी , सायकिल ,मोटर सायकिल , ट्रक , मकान , जूता , चप्पल , मोबाइल ,कंप्यूटर , टी.वी. , फ्रिज , वाशिंग मशीन , कूलर , पंखा , रेडियो , हीटर |
4. भाषा के रंग-
(क) नीचे लिखे शब्दों के तुकांत शब्द लिखिए – जैसे- सागर : गागर
इंदु : बिंदु, धुन : घुन, माया : काया,
लीला : पीला, मिला : किला
( ख ) नीचे दिए गए शब्दों के समानार्थी शब्द लिखिए –
जैसे – इंदु : चन्द्रमा
प्रकाश : रोशनी, सागर : समुद्र, मनोरथ : अभिलाषा
जगत : संसार, तरंग : लहरें
5. आपकी कलम से –
सुबह शाम के दृश्यों को देखकर जो छवि आपके मन में उभरती है उसे अपने शब्दों में लिखिए ।
उत्तर: सुबह शाम में जब हम आसपास के दृश्यों को देखते हैं तो हमें बहुत सुंदर दृश्य दिखाई देता है एकदम साफ आसमान सुंदर पेड़ पौधे खेत खलियान में शांति, ध्वनियों में चिड़ियों की आवाज में चीं-चीं और कोयल की कू-कू, सर-सर चलती हवा महसूस होती है ।
6. अब करने की बारी –
कविता का अभ्यास कर कक्षा में भाव पूर्ण ढंग से सुनाइए ।
उत्तर: कविता को स्वयं याद कर कर कक्षा में सुनाएं ।
7. इस कविता को ध्यानपूर्वक पढ़िए –
- अब इस कविता पर तीन प्रश्न बनाइए ।
- प्रस्तुत कविता में कवि ईश्वर से क्या प्रार्थना कर रहा है ?
- कवि ने किस पथ पर चलने की कामना की है ?
- विहंग बनकर किस नभ में उड़ना चाहता है ?
- कविता को मनचाहा शीर्षक दीजिए ।
उत्तर: मेरा पथ आलोकित कर दो
- कविता पर चित्र बनाइए ।